बजन कम रहे तो नहीं होंगे घुटने ख़राब
उम्र के चार दशक बीत जाने के बाद भी खानपान में जरा सी लापरबाही मोटापे में तप्दील हो जाती है।
मोटापा भी ऐसा की बहुत आसानी से पीछा नहीं छोड़ता। इसकी बजह यह हे की शरीर इस उम्र आते आते सिथिल होने लगता है। मरीज पहले की तरह एक्सरासइज नहीं कर पातेहै। जिबनसेली भी आरामतलब होने लगती है। यही कारण है की मोटापे के कारण घुटने खराब होने लगते है।
पिछले पांच वर्षो में total ni riplesment सर्जरी के मामलो में बृद्धि देखीं गई है। प्राइमरी ni रिप्लेसमेंट के दौरान ,घुटने के जोड़ो को एक इंप्लांट से बदला जाता है। जो अधिकांश मामलो में सफल होता है। लेकिन कभी कभी ये इंप्लांट ढीला पड़ जाता है या बाहर आने लगता है, जिसके कारण ni riplespnent की बाहर करनी पड़ती है या दोबारा करनी पड़ती है। स्थिति के आधार में इस सर्जरी में इंप्लांट के कुछ कम्पोनेट का कुछ बदलाब या ुनिकम्पार्टमेन्टल जॉइन्ट रिप्लेशमेंट की जरुरत पद सकती है।
इस तरह बढ़ता है मोटापा
जीबनसेली अकसर सर्जरी के बाद मोटापा बढ़ा देती है। इसलिए नियमित हल्की एक्सरासइज और योग के साथ संतुलित पोस्टिक आहार लेने की जरुरत ली जाती है। 2 महीने के अंत तक यदि आप 1 . 2 k m चल पा रहे है ,तो आप बिल्कुल सही जा रहे है। जिन मरीजों को डायब्टीज़ होती है ,उन्हें सर्जरी के महीनो बाद संक्रमण होने का खतरा होता है।
इलाज
यदि aitharishtik के कारण घुटना एक दम बेकार हो जाय और ब्यक्ति चलने फिरने में असमर्थ हो जाय तो घुटना बदलना ही सही उपाय है। इस opresation कि सफलता दर सही होती है। ओपरेसान के बाद न दर्द सताता है न चलने फिरने के लिए किसी की जरूरत पड़ती है। कृतिम जोड़ ऐसे प्राकृतिक बनाए जाते है जिसे शरीर आसानी से ग्रहण कर लेता है। इसका कोई बिपरीत प्रभाब या एलर्जी भी नहीं होती है।
साबधानी
यह ठीक हे कि अब कृतिम जोड़ी का प्रत्यारोपण हो गया है और यह सम्भब है। यदि आप बुढ़ापे में हड्डियों के रोगो से बचना चाहते है तो अपनी जीबन चर्या में थोड़ा सा सुधार करने की जरुरत है। घी ,चीनी ,चिकनाई का खाने में काम उपयोग करे ,संतुलित आहार लेने की कोशिस करे। साग ,सब्जी खाय और थोड़ा बयाम करें।
0 Comments