प्लेसिबो एफ्फेट क्या है और यह हमारी बॉडी में कैसे काम करता है ?What is placebo effect and how does it work in our body?




जब कभी आपकी तबियत ख़राब होती अच्छा महसूस नहीं होता है , तो आप  करते है ? मेडिसन लेते डॉक्टर के  पास जाते है।  और इलाज भी करबाते है।  जिससे आप बेहतर महसूस करने लगते है।  तबियत ठीक  हो जाती और अच्छी हेल्थ दोबारा मिल जाती है।  तो इलाज और डॉक्टर इफेक्टिव केयर देने बाले कारण होते है।  


क्या हो यदि मेडिसन या दबाई कि जगह एक मीठी गोली या पानी का इंजेकशन लगने से भी आपकी तबियत ठीक हो  जाय , तो आप इसे क्या कहेगे ? तो इसी को placebo effect जी है येplacebo effec  ही है जो दिमाग और बॉडी के डीप कनेकशन और हमारे बिलीव सिस्टम



 का हमारे हेल्थ पर सीधा असर करता है    .  हमारा माइंड बहुत ही पावर फुल है , ये आपने अक्सर सुना होगा , और जब इसी पॉवरफुल दिमाग को हीलिंग का मौका दिया जाता है , तो बह किसी रियल मेडिसन और इलाज के फायदा पंहुचा सकता है।  placebo effect के जरिए बहुत आसानी से समझा जा सकता है।  


क्या है  placebo effect इसका use कब और कहा किया जाता है ? और क्या है इनके साइडएफेक्ट ?


प्लेसिबो इफ़ेक्ट इसे डमी टेस्ट भी कहा जाता है।  और जब इनेक्टिव इलाज करने से किसी पर्सन के शारीरिक या दिमागी सुधार आता है , तो उसे placebo effect कहते है।  ये एक ऐसे इलाज को रेफर करता है रियल तो लगता है , लेकिन होता नहीं है। 


 क्यों इसमें दी जाने बाली डमी मेडिसन असली नहीं होती है बल्कि शुगर पिल भी हो सकती सॉल्ट वाटर इंजेकशन भी दिया जा सकता है।  और एक फेक सर्जिकल  के जरिये भी इलाज किया जा सकता है।

 इसका use क्लिनिक में ट्रायल के लिए काफी और पहले से  हो रहा है।  क्योकि इससे हर दबाइयो का सब कुछ आसानी से पता चल जाता है।  

इसे उपयोग करने के लिए क्लिनिक ट्रायल को दो ग्रुप में बाटा जाता है।  एक ग्रुप को नई मेडिसन दी जाती है तो दूसरे ग्रुप को मीठी गोली जिसे  placeboकहा जाता है बो दी

 जाती है।  उसके बाद दोनों मेडिसन के रिजल्ट को कम्पेयर  किया जाता है।  और इसी के बेस से पता लगाया जाता है कि रियाल मिडसेन्स का असर केसा है।  ये प्लेसिबो ट्रीटमेंट सेव मने जाते है।  क्योकि ये क्लीनिकल ट्राय शामिल होते है तो ये रिस्की होते , तो इनका उपयोग कभी नहीं किया जाता 

और इनका use उन्ही हेल्थ इसुज में किया जाता है , जहा इससे कोई रिस्क पैदा न हो इसलिए आज भी कैंसर जैसी बीमारियों में placebo का उपयोग रियाल ही होता है।  प्लेसिबो का यूज़ करने बाले क्लीनिकल ट्रायल सिंगल ब्लाइंड भी हो सकते है और डबल ब्लाइंडभी हो सकते इसका मतलब यह होता है कि 

सिंगल ब्लाइंड; सिंगल ब्लाइंड का मतलब कि ट्रायल में पार्ट लेने बाले पर्सन को नहीं पता होता कि उन्हें रियल दबाई दी जा रही या फेक मतलब placebo के रूप में दिया जा रहा है।  


 डबल ब्लाइंड; और इसमें दोनों को ही पता नहीं होता रिशर्च करने बाले को भी और पार्टिसिपेट करने बाले को भी।  तो इस तरह के ट्रॉयल ग्रुप अलग ही ग्रुप को पता होता है की किसे क्या दिया गया है।  


और ऐसे कई क्लीनिकल ट्रायल में पाया गया है कि प्लेसिबो ने पार्टिसिपेट करने बाले को अच्छे और पोस्टिव रिजल्ट दिए है।  



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